आनंद मार्ग शिविर: बाह्याचार नहीं, आंतरिक साधना से प्राप्त होती है मुक्ति
जमशेदपुर। आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय निरीक्षण, समीक्षा और संगठनात्मक एकजुटता शिविर का शुभारंभ सद्गुरु श्री श्री आनंदमूर्ति जी की प्रतिकृति पर माल्यार्पण के साथ हुआ। शिविर में साधक-साधिकाओं को संबोधित करते हुए केंद्रीय प्रशिक्षक आचार्य मंत्रचैतन्यानंद अवधूत ने आत्मसाक्षात्कार और मोक्ष प्राप्ति के लिए आंतरिक साधना पर बल दिया।
आचार्य जी ने शिव-पार्वती संवाद के आलोक में स्पष्ट किया कि बाह्य तप, यज्ञ या उपवास जैसे कर्मकांड मोक्ष का साधन नहीं बन सकते। उन्होंने कहा, “वास्तविक मुक्ति केवल ‘मैं ब्रह्म हूँ’ के ज्ञान से ही संभव है।” उन्होंने बताया कि प्राचीन काल से लोग तप, व्रत, यज्ञ और तीर्थयात्रा जैसे बाह्याचारों में उलझे रहे हैं, लेकिन शिव ने स्पष्ट किया कि शरीर को कष्ट देने वाली ये क्रियाएँ आत्मसाक्षात्कार का मार्ग नहीं हैं। यदि ऐसा होता, तो श्रमिक, पशु या साधनहीन व्यक्ति सहज ही मोक्ष प्राप्त कर लेते।

आचार्य जी ने उपवास के वास्तविक अर्थ को समझाते हुए कहा कि “उपवास” का मतलब है मन को परमात्मा के निकट स्थिर करना। यह सांसारिक विक्षेपों से मुक्त होकर ईश्वरचिंतन में लीन होने की प्रक्रिया है। उन्होंने साधकों को बाह्याचार के बजाय आंतरिक साधना पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया। भगवान शिव के कथन का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, “वे मूर्ख हैं जो अपने हाथ में रखे भोजन को फेंककर दर-दर भटकते हैं।”
आचार्य जी ने साधकों के लिए भगवान शिव द्वारा बताए गए छह आवश्यक गुणों का भी उल्लेख किया:
-फलिष्यतीति विश्वासः लक्ष्य में सफलता का दृढ़ विश्वास।
श्रद्धया युक्तम्: लक्ष्य के प्रति अटूट श्रद्धा। शिव ने श्रद्धा को परिभाषित करते हुए कहा, “जब मनुष्य परम सत्य को ध्येय बनाकर निःस्वार्थ भाव से उसकी ओर बढ़ता है, तो यही श्रद्धा है।”
-गुरुपूजनम्: गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान।
-समताभाव: आत्मबोध के बाद भी सभी प्राणियों के प्रति समता का भाव।
-इन्द्रियनिग्रह : इंद्रियों पर संयम।
-प्रमिताहार : संतुलित और पोषक आहार का सेवन।
पार्वती के सातवीं योग्यता के प्रश्न पर शिव के उत्तर, “सप्तमं नैव विद्यते” का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने कहा कि यदि ये छह गुण साधक में विकसित हो जाएँ, तो किसी अन्य योग्यता की आवश्यकता नहीं रहती।
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