बांस बना वरदान: महाराष्ट्र में फ्लाई ऐश से बर्बाद ज़मीन को फिर से बना रहा उपजाऊ
विदर्भ, महाराष्ट्र: पश्चिम भारत के महाराष्ट्र राज्य में, कभी फ्लाई ऐश से बर्बाद हो चुकी ज़मीन अब बांस की मदद से फिर से उपजाऊ बन रही है। यह संभव हो पाया है राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (CSIR-NEERI) के डॉ. लाल सिंह के 12 वर्षों के अथक प्रयासों से, जिन्होंने एक पांच-चरणीय पद्धति के ज़रिए इस पुनर्जीवन मिशन को अंजाम दिया।
भारत, जो विश्व के सबसे बड़े कोयला-जलाने वाले देशों में से एक है, अब फ्लाई ऐश जैसे जहरीले अवशेषों से प्रभावित हजारों एकड़ ज़मीन को पुनर्जीवित करने की चुनौती से जूझ रहा है। फ्लाई ऐश में भारी खनिज, विशेषकर सिलिका, पाया जाता है जो खेतों की उपज को लगभग समाप्त कर देता है।
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के उबगी और खापरी जैसे गांवों में, थर्मल पावर प्लांटों के कारण करीब 24 एकड़ छोटे किसानों की ज़मीन राख से ढंक गई थी। ऐसे में डॉ. सिंह ने बांस के जरिए इस समस्या का समाधान खोज निकाला।
द बेटर इंडिया से बातचीत में डॉ. सिंह बताते हैं, “फ्लाई ऐश में ‘सिलिका’ नामक तत्व होता है, जो फसलों पर जम जाता है और उनकी उपज घट जाती है। लेकिन बांस एक ऐसा पौधा है जो सिलिका को आकर्षित करता है, जिससे यह फसलों तक नहीं पहुंच पाता।”
बांस की 1000 से अधिक प्रजातियों में से हर गांव के लिए उपयुक्त प्रजाति का चयन भी इस प्रक्रिया का अहम हिस्सा है। डॉ. सिंह ने हर जगह की परिस्थितियों के अनुसार बांस की किस्मों का चयन कर एक दोहराने योग्य मॉडल विकसित किया है।
यह पहल न केवल ज़मीन को फिर से उपजाऊ बना रही है, बल्कि गांवों में किसानों की आजीविका को भी संजीवनी दे रही है — और देश के अन्य फ्लाई ऐश प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बनकर उभर रही है।
