एमजीएम अस्पताल में युवक कर रहा था अवैध जांच‚ अधीक्षक ने मौके पर पकड़कर मचाया हड़कंप

जमशेदपुर: महात्मा गांधी मेमोरियल (MGM) मेडिकल कॉलेज अस्पताल की छवि को गहरा धक्का पहुंचाने वाला एक बड़ा फर्जीवाड़ा उजागर हुआ है।
अस्पताल के नए भवन के कमरा संख्या 134 में एक युवक बिना किसी अधिकृत अनुमति के मरीजों की यूरोफ्लोमेट्री और ब्लड जांच कर रहा था। हैरानी की बात यह है कि उसे यह कमरा एक नर्स की मिलीभगत से मिला था।
अधीक्षक डॉ. आरके मंधान को जैसे ही मामले की जानकारी मिली, उन्होंने बिना देर किए मौके पर पहुंचकर युवक को रंगेहाथ पकड़ लिया। पूछताछ में युवक ने अपना नाम मोबिन बताया और खुलासा किया कि वह पहले पुराने भवन के मेडिसिन विभाग के पास बैठता था और अब नए भवन में आकर अवैध रूप से जांच कर रहा था।
मोबिन ने यह भी बताया कि एक अन्य व्यक्ति, जो खुद को किसी “थायरोकेयर” लैब से जुड़ा बताता है, नियमित रूप से अस्पताल आता था। वह मरीजों से रुपये लेकर उनका ब्लड सैंपल ले जाता था, लेकिन रिपोर्टें कभी नहीं सौंपता था। एक मरीज से 300 रुपये वसूल कर ब्लड सैंपल लिया गया, लेकिन रिपोर्ट गायब है।जब इस मामले की जानकारी विधायक सरयू राय तक पहुंची, तो उन्होंने तुरंत अस्पताल प्रशासन को जांच के निर्देश दिए। अधीक्षक द्वारा की गई छापेमारी में फर्जी लैबिंग का पूरा खेल सामने आ गया।
सबसे गंभीर सवाल यह है कि युवक को रूम की चाबी किसने दी? अस्पताल में उसकी नियमित एंट्री कैसे होती थी?अधीक्षक ने आशंका जताई है कि इस मामले में कुछ डॉक्टरों, नर्सों या अन्य कर्मचारियों की मिलीभगत हो सकती है। मामले की जांच का जिम्मा उपाधीक्षक डॉ. जुझार माझी को सौंपा गया है, जिन्होंने इसे गंभीर मामला मानते हुए तह तक जांच करने और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की बात कही है।
फिलहाल उस कमरे को तत्काल प्रभाव से खाली करवा दिया गया है और मोबिन व उससे जुड़े अन्य लोगों की तलाश की जा रही है। अस्पताल प्रशासन द्वारा एफआईआर दर्ज करने की तैयारी भी की जा रही है।उल्लेखनीय है कि यूरोफ्लोमेट्री एक विशेष और संवेदनशील जांच प्रक्रिया होती है, जो प्रशिक्षित तकनीशियन या डॉक्टर की देखरेख में ही की जानी चाहिए। लेकिन एमजीएम में इसका गैरकानूनी और लापरवाहीपूर्ण प्रयोग हो रहा था।
यह घटना केवल एक व्यक्ति या एक कमरे तक सीमित नहीं है — यह सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था में व्याप्त ढिलाई, सुरक्षा चूक और प्रशासनिक असंवेदनशीलता को उजागर करती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि बिना नियुक्ति या पहचान पत्र के कोई व्यक्ति मरीजों के साथ सीधे संपर्क में कैसे आ सकता है?
अब देखना यह होगा कि एमजीएम प्रशासन इस मामले में कितनी पारदर्शिता बरतता है और दोषियों के खिलाफ कितनी कठोर कार्रवाई करता है।