October 19, 2025

मानो फिर से चलना सीख रहा हूं…”: अंतरिक्ष से लौटे ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने साझा किया भावुक अनुभव

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अंतरिक्ष यात्रा जितनी रोमांचक और गौरवशाली होती है, उतनी ही गहराई से यह इंसान के शरीर और मन को छू जाती है। भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने हाल ही में अपनी अंतरिक्ष यात्रा पूरी की और लौटने के बाद सोशल मीडिया पर जो अनुभव साझा किए, वे न सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टि से अहम हैं, बल्कि भावनात्मक रूप से भी बेहद मार्मिक हैं।

शुभांशु ने लिखा, “हम जन्म से गुरुत्वाकर्षण के बीच जीते हैं, हमारा शरीर उसी के अनुरूप ढला होता है। लेकिन अंतरिक्ष में पहुंचते ही यह रिश्ता टूट जाता है — और तब महसूस होता है कि शरीर को खुद को बिल्कुल नए सिरे से समझना पड़ता है।”

उन्होंने बताया कि माइक्रोग्रैविटी में शरीर के तरल कम हो जाते हैं, दिल की धड़कन धीमी हो जाती है, और संतुलन बनाए रखने की प्रणाली जैसे खुद से सवाल करने लगती है – “अब मैं क्या करूं?” पर शुभांशु कहते हैं, “अद्भुत बात ये है कि शरीर बहुत जल्दी इन नए हालातों को स्वीकार कर लेता है और अंतरिक्ष में रहना सामान्य लगने लगता है।”

लेकिन सबसे भावुक क्षण तब आया जब वे धरती पर लौटे। उन्होंने लिखा, “स्प्लैशडाउन के बाद जब मैंने फिर से ज़मीन पर कदम रखा, तो लगा जैसे एक बच्चा फिर से चलना सीख रहा हो। गुरुत्वाकर्षण दोबारा मेरे शरीर से संवाद कर रहा था, और शरीर उसे समझने की कोशिश कर रहा था।”

इस वापसी को शुभांशु ने “एक नई शुरुआत” बताया — जहां धरती पर लौटकर चलना, उठना, संतुलन बनाना भी एक चुनौती था। “रिएक्शन टाइम कम हो जाता है, और सबसे ज़्यादा महसूस होता है — खुद के अंदर की उस लय को जो अब बदल चुकी होती है। लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो जाता है, जैसे धरती आपको फिर से अपनाने लगती है।”

उन्होंने लिखा कि ये अनुभव सिर्फ एक मिशन नहीं था, बल्कि आत्मा के भीतर तक उतरने वाली यात्रा थी — जहां इंसान सिर्फ अंतरिक्ष से नहीं लौटता, बल्कि खुद से भी थोड़ा बदलकर वापस आता है।

शुभांशु का यह भावुक और वैज्ञानिक अनुभव ना सिर्फ अंतरिक्ष विज्ञान को आगे ले जाने की दिशा में मददगार है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो जीवन में नई दुनिया खोजने की हिम्मत रखता है।