October 17, 2025

धार्मिक वेशभूषा में अश्लील हरकत करने वाले अधर्मी हैं: सुनील आनंद

Screenshot_2025-09-27-04-11-58-21_6012fa4d4ddec268fc5c7112cbb265e7


जमशेदपुर: आनंद मार्ग प्रचारक संघ के धर्म चक्र यूनिट, सोनारी और गदरा में आयोजित आध्यात्मिक तत्व सभा में सुनील आनंद ने कहा कि धार्मिक वेशभूषा धारण कर स्वयं को धर्मगुरु बताने वाले जो लोग समाज में जड़ता और अंधविश्वास फैलाते हैं, वे सभी अधर्मी हैं। ऐसे लोगों में परम पुरुष के प्रति प्रेम नहीं होता। जो लोग परम पुरुष के प्रति प्रेम से रहित हैं, वही धार्मिक वेशभूषा में शोषण करते हैं।
उन्होंने कहा कि परम पुरुष के प्रति प्रेम ही भक्ति है। भक्ति प्राप्त हो जाए तो जीवन में सब कुछ प्राप्त हो जाता है। भक्ति की अनुभूति जीवन की सर्वश्रेष्ठ अनुभूति है। समाज में भक्ति को लेकर विभिन्न धारणाएं हैं, और भक्त एक जैसे नहीं होते। भक्ति के चार प्रकार हैं: तामसिक, राजसिक, रागानुगा और रागात्मिका।
तामसिक भक्ति: इस भक्ति में व्यक्ति अज्ञानता, अंधविश्वास और नकारात्मक भावनाओं से प्रेरित होता है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग शक्तियों को प्रसन्न करने के लिए जीव बलि देते हैं। इसमें दूसरों की हानि और स्वयं के लाभ की भावना होती है। यह निम्न स्तर की भक्ति है, जो आध्यात्मिक प्रगति में बाधक है।


राजसिक भक्ति: इस भक्ति में व्यक्ति सांसारिक सुख, धन, संपत्ति, स्वास्थ्य या प्रसिद्धि के लिए भक्ति करता है। यह तामसिक भक्ति से बेहतर है, लेकिन पूर्ण संतुष्टि या आध्यात्मिक मुक्ति नहीं देती। इसमें भी अपनी कामनाएं केंद्र में रहती हैं।
रागानुगा भक्ति: यह उच्च स्तर की भक्ति है, जिसमें भक्त गुरु या आराध्य के प्रति प्रेम और समर्पण से भक्ति करता है। भक्त अपने आराध्य के बिना नहीं रह सकता और उसमें पूर्ण आसक्ति रखता है।
रागात्मिका भक्ति: यह भक्ति का सर्वोच्च स्तर है, जिसमें भक्त अपने आराध्य में पूरी तरह लीन हो जाता है। भक्त और आराध्य के बीच कोई अंतर नहीं रहता। भक्त अपने कष्ट के बावजूद आराध्य की खुशी चाहता है और अनन्य भक्ति में लीन रहता है।
सुनील आनंद ने जोर देकर कहा कि सच्ची भक्ति ही आध्यात्मिक मुक्ति का मार्ग है, और समाज को अंधविश्वास से मुक्त कर सच्चे प्रेम और समर्पण की ओर बढ़ना चाहिए।