आशा-ममता कार्यकर्ताओं की मेहनत को मिला राजनीतिक रंग‚ तेजस्वी ने बताया अपनी जीत

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बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए हैं। आशा और ममता कार्यकर्ताओं की प्रोत्साहन राशि बढ़ाने के फैसले को लेकर अब सियासत गरमा गई है।
बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की कि राज्य में आशा कार्यकर्ताओं को अब 1,000 रुपये की जगह 3,000 रुपये प्रतिमाह प्रोत्साहन राशि दी जाएगी, जबकि ममता कार्यकर्ताओं को प्रति प्रसव 300 की जगह 600 रुपये दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस फैसले से ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती मिलेगी और कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ेगा।
हालांकि, इस फैसले के तुरंत बाद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सरकार पर हमला बोलते हुए इसे अपनी जीत बताया। तेजस्वी ने दावा किया कि जब वे स्वास्थ्य मंत्री थे, तब इस योजना की शुरुआत उन्होंने की थी और यह अंतिम चरण में थी, लेकिन सरकार बदलने के बाद एनडीए ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।
तेजस्वी ने कहा, “यह वही सरकार है जो दो साल से फाइल पर बैठी थी। अब चुनाव नजदीक देखकर उन्हें डर लगने लगा है और हमारी मांग को लागू करने के लिए मजबूर हो गए हैं। मगर यह चालाकी है क्योंकि इन्हें सिर्फ़ प्रोत्साहन राशि नहीं, बल्कि मानदेय मिलना चाहिए।”तेजस्वी ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि जब उन्होंने विकास मित्र, शिक्षा मित्र, टोला सेवक, तालीमी मरकज़ और पंचायती राज प्रतिनिधियों का मानदेय बढ़ाया था, तब एनडीए ने उसका मखौल उड़ाया था।
अब वही नीतियां अपनाई जा रही हैं। उन्होंने पूछा, “सब कुछ तेजस्वी का ही नकल करोगे, या अपनी भी अक्ल लगाओगे?”राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में आशा-ममता कार्यकर्ताओं की संख्या लाखों में है और यह फैसला आने वाले चुनाव में बड़ा असर डाल सकता है। इसलिए दोनों पक्ष इस फैसले का राजनीतिक फायदा लेने की कोशिश कर रहे हैं।